विलासिता का साधन माना जाता था आईने को ➨
आईने का इतिहास ईसा पूर्व तीन सदी पहले शुरू होता है | प्राचीन काल में ज्यादातर ग्रीक और रोमन लोग धातुओ के बने ऐसे आईनो का इस्तेमाल करते थे , जिन के पिछले हिस्से को रतन-आभूषणों से सजाया जाता था | उस दौर में कांसा व चांदी जैसी धातुओं को खूब चमकाते हुए आईने की शक्ल दी जाती थी |
जहां तक कांच के आईने का सवाल है तो इसका चलन मध्य युग से शुरू हुआ | सोलवीं सदी के दौरान वेनिस के मुरानो द्वीप पर कांच के कुछ बेहतरीन कारीगरों ने कांच की पट्टी से आईना बनाने की विधि ईजाद की | इसके साथ ही वहां पर आईनो का उत्पादन शुरू हुआ , जिनकी पिछली सतह पर टीन और पारे के मिश्रण की पतली परत चढ़ी होती थी | उस दौर में कांच के आईनो को बहुमूल्य विलासिता की चीजों में गिना जाता था |
वर्ष 1835 में जर्मन केमिस्ट जस्टस वॉन लीबिग ने पहली बार ऐसा आईना तैयार किया , जिस पर चांदी की बारिक परत चढ़ी थी उनकी इस खोज ने आईने को आम लोगों की पहुंच में ला दिया और इसका व्यापक इस्तेमाल संभव हो गया | आधुनिक आईनो में ज्यादातर एलुमिनियम जैसी धातु की परत का इस्तेमाल किया जाता है |
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