रेबीज के टीके का सफल परीक्षण➨
रेबीज एक ऐसी संक्रमण बीमारी है , जो सीधे पीड़ित जीव के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है | रेबीज ग्रस्त जानवरों के काटने से फैलने वाले इस रोग का इलाज इसकी वैक्सीन की ईजाद से पहले संभव नहीं था | रेबीज वैक्सीन की ईजाद का श्रेय फ्रांसीसी विज्ञानी लुई पाश्चर और उनके सहयोगी एमिली रॉक्स को जाता है ,
जिन्होंने वर्ष 1885 में 6 जुलाई को जोसेफ मेंस्टर नामक एक नो वर्षीय बालक ( जिसे इसको दो दिन पहले ही रेबिजग्र्स्त कुते ने काटा था ) पर इसका प्रथम परिक्षण किया था | उन्होंने पहले रेबीज संक्रमण से मृत खरगोश के स्पाइनल कॉर्ड से इस वायरस का नमूना लिया | इसके बाद वायरस की शक्ति क्षीण करने के लिए नमूने को पांच से दस दिन तक सुखाया | उन्होंने इसी नमूने का जोसफ पर परीक्षण किया था ,
जो पूर्णत: सफल रहा | इस तरह रेबीज का पहला टीका अस्तित्व में आया | इसकी चौदह खुराक दी जाती थी | पाश्चर की इस रेबीज टीकाकरण तकनीक को जल्द ही दुनियाभर के देशो ने अपना लिया | वर्ष 1967 में ह्यूमन डीप्लौइड सेल रेबीज वैक्सीन ( एचडीसीवी ) ईजाद हुई , जिसका आज रेबीज के इलाज में व्यापक इस्तेमाल होता है |
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